भारतीय संविधान का ऐतिहासिक विकास | 1773 से 1853 तक का पूरा इतिहास

नमस्ते! इस ब्लॉग लेख में आपको ईस्ट इंडिया कंपनी का भारत में आगमन, संविधान की पृष्ठभूमि, रेगुलेटिंग एक्ट, चार्टर एक्ट (1773 से 1853) के बारे में अध्ययन करने के लिए मिलेगा।

ईस्ट इंडिया कंपनी का भारत आगमन

1600 ई. में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कम्पनी (British East India company) भारत में व्यापार करते आई। महारानी एलिज़ाबेथ द्वारा ब्रिटिश कंपनी को भारत से व्यापार करने के एकाधिकार प्राप्त थे। रॉयल चार्टर के अनुसार कम्पनी को नौवहन, सैन्य शक्ति, फैक्ट्री स्थापित करना और संधि करने का अधिकार प्राप्त था।
1757 का प्लासी युद्ध व 1764 के बक्सर युद्ध जीतने के पश्चात इलाहाबाद की संधि के अनुसार कम्पनी को बंगाल, बिहार व ओडिशा के दिवाली अधिकार प्राप्त हुए। जिसके आधार पर अब ब्रिटिश कंपनी इन तीनों क्षेत्रों से कर (tex) वसूलने का अधिकार था। 

रेगुलेटिंग एक्ट 1773 का ऐतिहासिक महत्व

रेगुलेटिंग एक्ट ऑफ 1773

यह अधिनियम ब्रिटिश संसद द्वारा पास किया गया था। ब्रिटिश सरकार का कंपनी को नियंत्रित और नियमित करने की दिशा में पहला कदम था। इस अधिनियम द्वारा ही भारत में प्रशासनिक केंद्रीकरण (Centralization) की नींव रखी गई। इस अधिनियम के मुख्य प्रावधान:- 

बंगाल का गवर्नर जनरल: इस एक्ट के माध्यम से बंगाल के गवर्नर के पद का नाम 'बंगाल का गवर्नर जनरल' कर दिया गया। वॉरेन हैस्टिंग्स बंगाल के पहले गवर्नर जनरल नियुक्त किए गए थे। इस अधिनियम से बॉम्बे और मद्रास से गवर्नर को बंगाल के गवर्नर जनरल के अधीन किया गया था। 
गवर्नर जनरल की परिषद: गवर्नर जनरल की सहायता के लिए चार सदस्यों की कार्यकारी परिषद का गठन किया गया था। जो गवर्नर जनरल को सहायता प्रदान करती थी। परिषद को निर्णय बहुमत के आधार पर करना होता था, जिसका पालन गवर्नर जनरल को मानना अनिवार्य था। 
सुप्रीम कोर्ट की स्थापना: कलकत्ता में एक सुप्रीम कोर्ट की स्थापना (1774) की गई थी। जो भारत का पहला सुप्रीम कोर्ट था। इसमें एक मुख्य न्यायाधीश और तीन अन्य न्यायाधीश को नियुक्ति की गई थी। Sir Elijah Empey इस न्यायालय के पहले मुख्य न्यायाधीश थे। 
कोर्ट ऑफ डायरेक्टर्स: कम्पनी पर नियंत्रण करने के उद्देश्य से कोर्ट ऑफ डायरेक्टर्स का गठन किया गया था। कंपनी को नागरिक और सैन्य मामलों की रिपोर्ट ब्रिटिश सरकार के समक्ष पेश करना आवश्यक था। इस आधार पर ब्रिटिश सरकार का कंपनी पर नियंत्रण मजबूत हुआ। 
निजी व्यापार और भ्रष्टाचार: ईस्ट इंडिया कंपनी के कर्मचारियों के निजी व्यापार पर प्रतिबंध लगाया गया। इसके साथ ही कर्मचारियों को किसी भी तरह के उपहार, भेंट और रिश्वत लेने पर रोक लगाई गई। लंदन में एक बोर्ड का गठन जो कंपनी की गतिविधियों की निगरानी करता था। 

इस अधिनियम का महत्व 

यह अधिनियम ब्रिटिश संसद द्वारा भारत क्षेत्र पर पास किया गया पहला कानून था। इस अधिनियम के माध्यम से ब्रिटिश सरकार कंपनी पर राजनीतिक नियंत्रण स्थापित करने की प्रारंभिक गतिविधि थी। भारत में प्रशासनिक केंद्रीकरण की शुरुआत इसी अधिनियम से हुई। चूंकि यह कानून ब्रिटिश संसद का भारत पर पहला कानून था, स्वाभाविक था कि इसमें कुछ कमी अवश्य रही होगी। जिसे दूर करने के लिए ब्रिटिश संसद संशोधन अधिनियम, 1781 और पिट्स इंडिया एक्ट, 1984 पेश किया गया। 

संशोधन अधिनियम, 1781

इसे सेटलमेंट एक्ट ऑफ 1781 की कहा जाता है। यह अधिनियम 1773 के रेगुलेटिंग एक्ट की कमी को दूर करने के लिए पेश किया गया था। इसका मुख्य उद्देश गवर्नर जनरल की परिषद और सुप्रीम कोर्ट की शक्तियों का विभाजन करना था। जो इससे पूर्व के अधिनियम में नहीं किया गया था। परिषद और न्यायालय की शक्तियों का प्रथक्करण का प्रावधान संविधान के अनुच्छेद 50 में दिया गया है। 

पिट्स इंडिया एक्ट, 1784

यह कानून ब्रिटिश सरकार का नियंत्रण कंपनी पर बढ़ाने और 1773, के रेगुलेटिंग एक्ट की कमी से निपटने के लिए लाया गया था। इस अधिनियम का नाम तत्कालीन ब्रिटिश प्रधानमंत्री विलियम पिट के नाम पर रखा गया था। कानून के मुख्य प्रावधान:- 

दोहरा शासन की शुरुआत: इस अधिनियम के माध्यम से दोहरे शासन का प्रारंभ हुआ। कंपनी के प्रशासन के दो नियमों के माध्यम से नियंत्रण किया गया था। 

  1. बोर्ड ऑफ कंट्रोल - - यह निकाय ब्रिटिश सरकार द्वारा गठित था। जिसका उद्देश्य कंपनी के प्रशासनिक और राजनीतिक कार्यों पर नियंत्रण करना था। इसके सदस्यों की नियुकी ब्रिटिश सरकार द्वारा की जाती थी। जिसमें दो सदस्य ब्रिटिश कैबिनेट के सदस्य होते थे। 
  2. कोर्ट ऑफ डायरेक्टर्स - - इस निकाय का गठन कंपनी के शेयरधारक मिलकर करते थे। जिसका कार्य कंपनी के वाणिज्यिक गतिविधियों को नियंत्रित करना था। इनकी व्यापारिक नीति थी कि कंपनी को मुनाफा कमाना और वित्तीय प्रबंधन करना। 
इस व्यवस्था को दोहरा शासन कहा जाता है। जिसमें राजनीतिक शक्तियाँ सरकार के पास और वाणिज्यिक शक्तियां कंपनी के पास है। 

कंपनी पर नियंत्रण: इस अधिनियम के द्वारा गवर्नर जनरल की शक्तियों का विस्तार कर कंपनी पर सरकार का नियंत्रण मजबूत किया गया। अब मद्रास और बॉम्बे के गवर्नर बंगाल के गवर्नर जनरल की अनुमति के बिना कोई संधि या युद्ध की घोषणा नहीं कर सकते थे। ब्रिटिश सरकार को अब ईस्ट इंडिया कंपनी के भारतीय मामलों में सीधे हस्तक्षेप करने का अधिकार प्राप्त था। 

चार्टर एक्ट, 1793

कंपनी के वाणिज्यिक एकाधिकार: ईस्ट इंडिया कंपनी के वाणिज्यिक एकाधिकार पुनः 20 वर्षों के लिए बढ़ा दिए गए। यानी कोई अन्य ब्रिटिश कंपनी भारत से व्यापार नहीं कर सकती है। 
गवर्नर जनरल: गवर्नर जनरल की शक्तियों का विस्तार के तहत अब बॉम्बे और मद्रास के गवर्नर को बंगाल के गवर्नर जनरल के निर्णय मानने के लिए बाध्य है। इस प्रावधान के अनुरूप भारत में केंद्रीकरण की प्रक्रिया को मजबूती मिली। 
ब्रिटिश सरकार का वार्षिक भुगतान: ईस्ट इंडिया कंपनी को अब वार्षिक रूप से 5 लाख पाउंड ब्रिटिश सरकार को देने का नियम बनाया गया। 

चार्टर एक्ट 1813

यह अधिनियम ब्रिटिश संसद द्वारा पारित एक ऐतिहासिक कानून था। जिसमें कंपनी के व्यापारिक एकाधिकार को समाप्त कर, भारत में ब्रिटिश उपनिवेशवाद का एक नया दौर प्रारंभ किया। अधिनियम के प्रावधान:- 


व्यापारिक एकाधिकार: ईस्ट इंडिया कंपनी के व्यापारिक एकाधिकार समाप्त कर मुक्त व्यापार की नीति अपनाई गई। जिसके तहत अब ब्रिटेन से अन्य कम्पनियां भी व्यापार करने के उद्देश्य से भारत आ सकती है। किंतु यह एकाधिकार पूर्ण रूप से समाप्त नहीं था। चाय और चीन के साथ व्यापार के अधिकार अभी भी केवल ईस्ट इंडिया कंपनी के पास ही थे। 
धार्मिक मिशनरियों को अनुमति: भारत में ईसाई धर्म के प्रचार प्रसार करने की अनुमति प्रदान की गई। ईसाई मिशनरियों को धर्म को बढ़ाने की अनुमति थी। अब वे भारत में धर्म प्रचार, शिक्षा और पुस्तक की छपाई का कार्य कर सकते थे। 
शिक्षा के लिए आर्थिक सहायता: इस अधिनियम के अनुसार कंपनी को भारत के भारतीयों की शिक्षा के लिए प्रतिवर्ष एक लाख रुपए खर्च करने का आदेश था। यह व्यवस्था भारत में शिक्षा के विकास की प्रारंभिक व्यवस्था मानी जाती है। हालांकि यह पैसा खर्च हुआ या नहीं इस पर नियंत्रण के लिए किसी निकाय का गठन नहीं किया गया था। 

चार्टर एक्ट, 1833

इस अधिनियम से केंद्रीकरण का अधिकतम रूप लागू हुआ। अर्थात् अधिनियम से भारत में एक अधिक प्रभावी सुसंगठित केंद्र सरकार की नींव रखी गई। मद्रास और बॉम्बे की संपूर्ण विधि संबंधित शक्तियां केंद्र सरकार के अधीन हस्तांतरण कर दी गई। 


व्यापारिक एकाधिकार समाप्त: कंपनी का चाय और चीन के साथ व्यापार पर भी एकाधिकार समाप्त कर व्यापारिक एकाधिकार पूर्ण रूप से समाप्त किया गया। अब ईस्ट इंडिया कंपनी केवल भारत में प्रशासनिक इकाई बनकर कार्य करने की संस्था थी न कि व्यापारिक इकाई। 
गवर्नर जनरल ऑफ इंडिया: गवर्नर जनरल ऑफ बंगाल के पद का नाम अब भारत का गवर्नर जनरल (Governor-General of India) बनाया गया। बंगाल, बॉम्बे और मद्रास की प्रेसीडेंसी को मिलाकर एक केंद्रीकृत प्रशासन की नींव रखी गई। भारत के पहले गवर्नर जनरल लॉर्ड विलियम बेंटिक थे। 
कानून निर्माण की प्रक्रिया: गवर्नर जनरल ऑफ इंडिया की कार्यकारी परिषद में एक नए सदस्य की नियुक्ति जिसे कानून सदस्य कहा जाता था। यह सदस्य केवल कानून निर्माण प्रक्रिया में शामिल होता था, प्रशासनिक कार्यों में नहीं। भारत में केंद्रीय विधायिका की शुरुआत यही से मानी जाती है। पहला कानून सदस्य लार्ड मैकाले था।
जाति, धर्म या नस्ल के आधार पर भेद नहीं: पहली बार यह प्रावधान जोड़ा गया कि सरकारी नौकरियों में किसी भारतीय के साथ धर्म, जाति, रंग, जन्म स्थान के आधार पर कोई भेद भाव नहीं किया जाएगा। लेकिन व्यावहारिक रूप से इस प्रावधान को लागू नहीं किया गया था। 

चार्टर एक्ट, 1853

चार्टर एक्ट की श्रृंखला का यह अंतिम अधिनियम था जिसे चार्टर एक्ट ऑफ 1853 कहा जाता है। इस अधिनियम ने कंपनी का शासन जारी रखा किंतु पहली बार यह निश्चित नहीं किया गया था कि कंपनी का शासन कब तक जारी रहेगा। जबकि सभी तक के सभी अधिनियम इसका निर्धारण करते थे। इसके साथ अधिनियम ने भारत की विधायी व्यवस्था, सिविल सेवा भर्ती जैसे कई महत्वपूर्ण परिवर्तन किए। 


कम्पनी का शासन: ब्रिटिश संसद द्वारा पहली बार कंपनी को भारत पर शासन का अधिकार की कोई निश्चित समय सीमा नहीं दी गई थी। ब्रिटिश संसद ने कंपनी को संकेत दिया था कि अब भारत में शासन स्थाई न होकर केवल समीक्षा योग्य रहेगा।
केंद्रीय विधान परिषद: भारत के गवर्नर जनरल की परिषद को दो भागों में विभाजित किया गया। कार्यकारी परिषद और विधायी परिषद। कानून बनाने के लिए अलग से एक विधायी परिषद का गठन किया गया। जिसमें छ: अतिरिक्त सदस्यों की नियुक्ति की गई थी। इस अधिनियम को भारत में दो सदन की संसद की अवधारणा के रूप में देखा जा सकता है। 
सिविल सेवा परीक्षा: पहली बार भारतीय सिविल सेवा के लिए खुली प्रतियोगिता परीक्षा का प्रावधान जोड़ा गया। जबकि इससे पहले सिविल सेवा भर्ती नामांकन या सिफारिश से होती थी। जिसे इस एक्ट द्वारा बंद किया गया था। 

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