बाल श्रम: एक सामाजिक अभिशाप और इससे निपटने के उपाय

नमस्ते दोस्तों, आज के इस लेख में हम भारत में बाल "श्रम: एक सामाजिक अभिशाप और इससे निपटने के उपाय" पर विस्तार पूर्वक अध्ययन करेंगे। इसका अर्थ, परिभाषा, भारत में बाल श्रम, कारण, संवैधानिक और वैधानिक उपबंध, निपटने का माध्यम आदि पर गहन चर्चा करेंगे। यह विषय upsc (ias/ips) की परीक्षा के दृष्टि से एक महत्वपूर्ण विषय है। इसके साथ इस विषय पर भारत के जागरूक नागरिक को भी अध्ययन करने की आवश्यकता है जिससे भारतीय समाज बाल श्रम जैसे अभिशाप से मुक्त हो सके। 

किसी भी देश में सबसे अधिक सुरक्षित वातावरण के हकदार उस देश के बच्चे होते है। बच्चों को एक ऐसे वातावरण या परिवेश में बड़े होने का अधिकार या जरूरत है जिसमें वे एक स्वतंत्र व गरिमामय पूर्ण जीवन जीने योग्य बने। बच्चों को शिक्षा व प्रशिक्षण के प्रयाप्त अवसर अवश्य मिलने चाहिए ताकि वे अपने और देश के विकास के भागीदार हो। शिक्षा के माध्यम से ही बच्चे जिम्मेदार व जवाबदेह नागरिक बन सकते है। 

बाल श्रम: एक सामाजिक अभिशाप और इससे निपटने के उपाय

भारत के लिए यह एक अपमानजनक बात है कि भारत के वर्तमान समय में एक बड़ी आबादी के बच्चे अपने शिक्षा के मूल अधिकार से वंचित रहकर बाल श्रम के चक्रव्यूह के शिकार है। जिनमें से अधिकांश बच्चे असंगठित क्षेत्र के काम करते है, जिन्हें अक्सर कम पैसों के साथ अमानवीय दशा जैसे बंदी बनाना, मारना-पीटना शामिल है। 

बाल श्रम/मजदूरी की परिभाषा 

बाल श्रम निषेद और विनियमन अधिनियम 1986 के अनुसार भारत में 14 वर्ष से कम आयु के बच्चों को किसी भी कार्य/प्रक्रिया में काम करने के लिए बाध्य करना बाल श्रम है। 
अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (International Labour Organization) के अनुसार 18 वर्ष से कम आयु के बच्चों द्वारा किया जाने वाला वह कार्य जो किसी बच्चे का शोषण करता है। बच्चों के मानसिक, शारीरिक या सामाजिक नुकसान पहुंचता है या उनकी जिंदगी पर संकट उत्पन्न करता है, बाल श्रम की परिभाषा में शामिल है। 

भारत में बाल श्रम/मज़दूरी 

विश्व में सबसे अधिक बाल श्रम आबादी भारत में है। उन सभी बच्चों को कार्य से हटाकर शिक्षा के लिए प्रोत्साहित करना भारत सरकार के लिए एक चुनौती पूर्ण कार्य है। ILO की रिपोर्ट के अनुसार 2011 की जनगणना के आधार पर वर्तमान समय में भारत के 1 करोड़ से अधिक बच्चे जिनकी आयु 5 से 14 वर्ष के मध्य है, किसी न किसी बाल श्रम के दुष्कर्म पीड़ित है। जिसमें से 80 लाख से अधिक बच्चे ग्रामीण क्षेत्र और 20 लाख से अधिक बच्चे शहरी क्षेत्रों में कार्यरत है। कार्य क्षेत्र अनुसार सबसे अधिक बच्चे कृषि/खेती के कार्य करते है। 
बाल श्रम की सर्वाधिक संख्या उत्तर प्रदेश में है जो देश की बाल श्रम संख्या का 21 लाख से अधिक (21.5%) है। इसके पश्चात बिहार (10 लाख), राजस्थान (8 लाख) तथा महाराष्ट्र (7 लाख) में है। [आंकड़े 2011 जनगणना]

राष्ट्रीय कानून और ILO कन्वेंशन 

  • ILO कन्वेंशन संख्या 138 के अनुसार बच्चों की कार्यशील आयु शिक्षा की न्यूनतम अनिवार्य आयु से कम (15 वर्ष) नहीं होनी चाहिए। 
  • ILO कन्वेंशन संख्या 182 ऐसे कार्यों पर प्रतिबंध लगाना चाहिए। जिसमें बच्चों के शारीरिक, मानसिक या नैतिक स्वास्थ्य को खतरा हो सकता है। इसका मुख्य कारण 18 वर्ष से कम आयु के बच्चों के लिए बाल श्रम के सबसे बुरे रूपों को पूर्ण तरीके से समाप्त करना है। 

बाल श्रम के कारण

1) गरीबी: बाल श्रम का सबसे बड़ा कारण गरीबी है। जिसके कारण अधिकांश बच्चे शिक्षा से वंचित रहकर बाल श्रम के दलदल में चले जाते है। गरीबी के कारण अभिभावकों का मानना है कि स्कूल के पाठ्यक्रम, पठन सामग्री आदि जीवन की दैनिक आवश्यकताओं के अनुकूल नहीं होती है। गरीबी के कारण अभिभावकों का मानना है कि कम आय वाले परिवार के बच्चे आय कमाने की प्रक्रिया के सहायक हो सकते है। 
बाल श्रम के पक्ष में एक तर्क यह भी दिया जाता है कि एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी को कौशल हस्तांतरित करने के आधार पर वे बाल श्रम की वकालत करते है। 
2) अशिक्षा: बाल श्रम का एक अन्य कारण अशिक्षा का होना भी है। शिक्षा नहीं होने के कारण बच्चों को अपने मानव अधिकार और मूल अधिकारों की जानकारी नहीं है जिसके परिणामस्वरूप वे कम वेतन पर बाल मजदूरी करने के लिए बाध्य है। इसके कारण उनका उत्पीड़न होता है। 
3) सामाजिक असमानता: मध्यकाल से ही भारत में सामाजिक असमानता की कुप्रथा चली आ रही है। जिस कारण से समाज के कुछ लोगों आगे बढ़ने के प्रयाप्त अवसर नहीं दिए जाते। समाज में पिछड़े होने के कारण उन्हें विकास और शिक्षा के अवसर नहीं मिले। यह भी बाल श्रम का एक कारण है। 

बाल श्रम के दुष्परिणाम 

भारत में बाल श्रम बच्चों के अमानवीय गतिविधियों का एक जाल है, जिस जाल में लगभग 1 करोड़ से अधिक बच्चे अपना बचपन के साथ विकास के अवसर भी खो रहे है।
बाल श्रम के दुष्परिणाम में स्वरूप बच्चे शिक्षा से दूर होते जा रहे है। जो कि बच्चों का एक मूल अधिकार है। बाल श्रम के कारण ही बच्चे अपना बचपन खो रहे है, बुढ़ापा जल्दी आना, विकास में अवरुद्ध, थकान, देखने में कमी, सुनने में कमी, उत्पादन शक्ति में कमी आदि दुष्प्रभाव बच्चों के स्वास्थ्य पर पड़ते है। 

बाल श्रम से संवैधानिक और विधिक सुरक्षा

संवैधानिक उपबंध

संविधान निर्माताओं ने महसूस किया कि बच्चे समाज का सबसे कमज़ोर वर्ग है। इसलिए इनका आर्थिक शोषण किया जा सकता है। इसी लिए संविधान निर्माताओं और समय समय पर संसद ने संविधान संशोधन के माध्यम से बच्चों की सुरक्षा के लिए निम्न प्रावधान किए। 
  1. अनुच्छेद 21A शिक्षा का अधिकार, राज्य अवश्य ही कानून बनाकर 6 से 14 वर्ष की आयु तक के बच्चों के लिए नि:शुल्क और अनिवार्य शिक्षा उपलब्ध कराएगा।
  2. अनुच्छेद 23A मनुष्यों के अवैध व्यापार और जबरन मजदूरी का निषेद 
  3. अनुच्छेद 24 फैक्ट्री आदि में बच्चों को काम पर लगाएं जाने पर निषेद, 14 वर्ष से कम आयु के बच्चों को फैक्ट्रियों आदि ऐसी जगह जहां खतरा हो, पर काम नहीं दिया जा सकता। 
  4. अनुच्छेद 45 राज्य के नीति निर्देशक तत्वों के अनुसार बचपन के प्रारंभिक वर्षों में बच्चों की देख-रेख तथा 6 वर्ष से कम आयु के बच्चों के लिए शिक्षा का प्रावधान। 
  5. अनुच्छेद 51A(k) भारत के प्रत्येक नागरिक जो माता पिता या अभिभावक का दायित्व है कि 6 से 14 वर्ष की आयु के अपने बच्चे को शिक्षा के अवसर प्रदान करे। 

विधिक/कानूनी प्रावधान

संवैधानिक उपबंधों के आधार पर समय समय पर अनेक कानून द्वारा बच्चों का बाल श्रम से बचाव का प्रवास किया जाता रहा है। जिसमें सबसे महत्वपूर्ण बाल मजदूरी (निषेध एवं विनियमन) अधिनियम, 1986 है। 
इस अधिनियम के अनुसार 14 वर्ष से कम आयु के बच्चों को ऐसे किसी भी स्थान पर कार्य नहीं करवाया जा सकता है, जहां उनके जीवन पर खतरा हो। अधिनियम की धारा 14 के अनुसार ऐसा करने पर कम से कम 3 महीने से 1 साल तक कैद या 10 हजार से 20 हजार तक जुर्माना या दोनों होने का प्रावधान है। 

प्रतिबंध नहीं किए गए व्यवसायों में बच्चों के लिए अनिवार्य प्रक्रिया

  • बच्चे से 6 घंटे से अधिक कार्य नहीं करवाया जा सकता जिसमें आधे घंटे का ब्रेक आवश्यक है। 
  • शाम 7 बजे से सुबह 8 बजे के मध्य किसी बच्चे से कार्य करने की मंजूरी नहीं। 
  • किसी बच्चे से ओवर टाइम नहीं करवाया जा सकता है। 
  • प्रत्येक बच्चे के लिए साप्ताहिक अवकाश का प्रावधान है। 

बाल श्रम समस्या के समाधान के सुझाव

शिक्षा को प्राथमिकता:बाल श्रम को समाप्त करने का सबसे महत्वपूर्ण कदम होगा शिक्षा को प्राथमिकता देना। बिना शिक्षा से बच्चे का विकास संभव नहीं है। शिक्षा के माध्यम से ही बच्चे अपने मानवीय और मूल अधिकारों को जानेंगे। और बाल श्रम जैसे दुष्कर्म से बाहर की ओर निकलेंगे। प्रत्येक नागरिक की जिम्मेदारी है कि वह सुनिश्चित करे कि उसके आस पास से सभी बच्चे स्कूल अवश्य जाए। 

अभिभावकों को जागरूक करे:अभिभावकों को बाल श्रम से होने वाले नकारत्मक प्रभावों से अवगत कराए। और माता पिता या अभिभावकों पर दबाव बनाए की अपने बच्चों को बाल श्रम की ओर नहीं भेजे। माता पिता या अभिभावकों का कर्तव्य है कि वो यथास्थिति अपने बच्चे को शिक्षा के अवसर अवश्य प्रदान करे और बाल श्रम से दूर रखे। 

कानूनों का सख्ती से पालन हो: सरकार यह सुनिश्चित करे कि बाल श्रम को रोकने और बाल शिक्षा के संबंधित सभी कानूनों का सख्ती से पालन हो। इस संबंध में आवश्यक अधिकारी को शक्ति प्रदान कसे जिससे यह सुनिश्चित हो कि देश का प्रत्येक बच्चा स्कूल जाए। और बाल श्रम को बढ़ावा देने वाले व्यक्ति को अधिक से अधिक दंड मिले। 

स्कूलों की गुणवत्ता सुधारी जाए: सरकार द्वारा स्कूलों की गुणवत्ता की सुधार की जाए। स्कूल में बाल श्रम के विषय में अध्ययन कर इससे होने वाले परिणामों का अध्ययन कराया जाए। स्कूल में प्रयाप्त अवश्य पठन सामग्री सरकार द्वारा उपलब्ध कराए जाने पर गरीब परिवारों के बच्चे भी स्कूल की और आयेंगे। जो अब तक गरीबी के कारण पठन सामग्री खरीदने के असमर्थ थे।

बाल अधिकारों का प्रचार: बाल श्रम को दूर करने का एक अन्य समाधान बाल अधिकारों को प्रचार कर किया जा सकता है। प्रत्येक बच्चे को अपने अधिकारों से परिचित करने पर वह मजदूरी छोड़ कर शिक्षा की और आने का प्रयास करेगा। सरकार द्वारा बच्चों से अधिकारों के प्रचार पर अवश्य कदम उठाएं जाए। 

निष्कर्ष 

बाल श्रम एक अपराध ही नहीं बल्कि एक सामाजिक बुराई है जो पूरे समाज को नकारात्मक रूप से प्रभावित करती है। जब एक बच्चा शिक्षा से वंचित होकर मजदूरी के लिए जाता है तो समाज को हानि होती है। बच्चा अपने साथ साथ देश की आने वाली प्रगतिशील संभावनाओं को नष्ट कर देता है। हम सब को यह सुनिश्चित करना होगा कि भारत का प्रत्येक बच्चा स्कूल जाए और अपना और देश के विकास का भागीदार बने। प्रत्येक बच्चे के विकास के बिना भारत के विकास की कल्पना करना संभव नहीं है। 

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